त्रिंशद्वर्षेषु कुमार एव विगतेष्वसौ प्रवव्राज ।
द्वादशभिर्वर्षाभि: प्रापद्वै केवलं तप: कुर्वन् ॥४०॥
अन्वयार्थ : [असौ सिद्धार्थ तनय] श्री वर्धमान [कुमार एव] कुमार काल में ही [त्रिंशद्वर्षेषु] तीस वर्षों के [विगतेषु] व्यतीत होने पर [प्रवव्राज] दीक्षित हुए- घर छोड़ कर दीक्षा हेतु वन को चले गये। [द्वादशभिः वर्षाभिः] लगातार बारह वर्षों तक [तपः कुर्वन] तप करते हुए [वै] निश्चय से [केवलं] केवलज्ञान को [प्राप्त] प्राप्त हुए।