तेपि ततस्तच्चेष्टितमीदृशमावेदयन् स्वकीयगुरो: ।
सोऽपि ततो द्विजमुख्यस्तमपूर्वं छात्रमित्यवदत् ॥४८॥
अन्वयार्थ : [तेऽपि] वे छात्र भी [ततः] तदन्तर [ईदृशं] इस प्रकार [तच्चेष्टितं] उसकी चेष्टा को [स्वकीय गुरोः] अपने गुरु को [आवेदयन्] निवेदन करने लगे। [सः] वह [द्विजमुख्यः] ब्राह्मणों में प्रमुख आचार्य भी [तम्] उस [अपूर्व] अनोखे नवीन [छात्र] छात्र को [इति] इस प्रकार [अवदत्] बोले।