शास्त्राणि करतलामलकायन्तेऽस्माकमिह समस्तानि ।
अपरेऽपि वादिनोऽस्माज्जायंते नष्टदुष्टमदा: ॥४९॥
अन्वयार्थ : [इह] यहाँ (इस भरत खण्ड में) [अस्माकं] मेरे लिये [समस्तानि] सम्पूर्ण [शास्त्राणि] शास्त्र-चारों वेद, छह वेदाङ्ग, सभी उपनिषद्, अठारहों पुराण, व्याकरण, तर्क, दर्शन, कोष, इतिहास, नीति शास्त्र आदि [करतलामलकायन्ते] हथेली पर रखे हुए आमलक/ आंवले की भाँति प्रत्यक्ष हैं। [अपरे] दूसरे [अन्यान्य वादिन] शास्त्रार्थी गण भी [अस्मात्] मुझसे [नष्टदुष्ट मदाः] नष्ट हो गया है- दुष्ट अहंकार जिनका- ऐसे हो गये हैं।