तत्केन हेतुना तद्व्याख्यानं नैव रोचते तुभ्यम् ।
कथयेति ततस्तस्मै प्रतिवचनमुवाच सोऽपीत्थम् ॥५०॥
अन्वयार्थ : [तत् केनं हेतुना] तो किस कारण से [तद् व्याख्यान] वह मेरा उपदेश [तुभ्यं] तुम्हारे लिये [नैव] नहीं, बिलकुल नहीं [रोचते] रुचता है [कथय इति] यह बताइए [ततः] अनन्तर [मोऽपि] वह छात्रवेष धारी इन्द्र भी [तस्मै] उस इन्द्रभूति गौतम आचार्य को [इत्थं] इस प्रकार [प्रतिवचन] उत्तर रूप में [उवाच] बोला।