सिद्धार्थनन्दस्य छात्रस्त्वं चेन्महेन्द्रजालविद: ।
देवागमं जनस्य प्रतिदर्शयतो वियन्मार्गे ॥५५॥
अन्वयार्थ : [त्वं चेत्] यदि तुम सिद्धार्थनन्दन वर्द्धमान के शिष्य हो तो [वियन्मार्गे] आकाशमार्ग में [जनस्य] जन समुदाय को [देवागम] देवों के आगमन को [प्रतिदर्शयतः] दिखाने वाले [महेन्द्रजालावदः] महान् इन्द्रजाल को जानने वाले जादूगर के [छात्रः] शिष्य [असि] हो।