तत्तेनैव विवादं सार्धं प्रकरोमि किं त्वया कार्यं ।
त्वत्तो जयापजययोर्ममैव विद्वत्सु लघुता स्यात् ॥५६॥
अन्वयार्थ : [तत्] तो [त्वया] तुमसे [किं कार्यम्] क्या करना [तेनैव] उसी के [साई] साथ [विवाद] शास्त्रार्थ [प्रकरोमि] करूंगा। [त्वत्तो] तुमसे [जयापजययोः] जय या पराजय में [ममैव] मेरी ही [विद्धत्सु] विद्वानों की गोष्ठी में [लघुता] छोटापन [स्यात्] सिद्ध होगा।