जम्बूनामा मुक्तिम प्राप यदासौ तथैव विष्णुमुनि: ।
पूर्वांग भेदभिन्नाशेषश्रुतपारगो जात: ॥७६॥
एवमनुबद्धसकलश्रुतसागरपारगामिनोऽत्रासन् ।
नन्द्यपराजित गोवर्धनाह्वया भद्रबाहुश्च ॥७७॥
एषां पंचानामपि काले वर्षशतसम्मितेऽतीते ।
दशपूर्वविदोऽभूवंस्तत एकादश महात्मान: ॥७८॥
तेषामाद्यो नाम्ना विशाखदत्तस्तत: क्रमेणासन् ।
प्रोष्ठिलनामा क्षत्रियसंज्ञो जयनागसेनसिद्धार्था: ॥७९॥
धृतिषेणविजयसेनौ च बुद्धिमान्गङ्गधर्मनामानौ ।
एतेषां वर्षशतं त्र्यशीतियुतमजनि युगसंख्या ॥८०॥
अन्वयार्थ : जम्बूस्वामी की मुक्ति के पीछे श्री विष्णुमुनि सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के पारगामी श्रुत केवली (द्वादशांग के धारक) हुए और इसी प्रकार से नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ये चार महामुनि भी अशेषश्रुतसागर के पारगामी हुए। उक्त पाँचों श्रुतकेवली १०० वर्ष के अंतराल में हुए अर्थात् भगवान की मुक्ति के पश्चात् ६२ वर्ष में ३ केवली हुए और फिर १०० वर्ष में ५ श्रुतकेवली हुए देखते-देखते श्रुत केवली सूर्य भी अस्त हो गया, तब ग्यारह अंग और दश पूर्व के धारण करने वाले ग्यारह महात्मा हुए। विशाखदत्त, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, घृतिषेण, विजयसेन, बुद्धिमान, गंगदेव और धर्मसेन। इतने में १८३ वर्ष का समय व्यतीत हो गया ॥७६-८०॥