पंचस्तूप्यात्सगुप्तौ गुणधरवृषभ: शाल्मलीवृक्ष मूलात्—
निर्यातौ सिंहचंद्रौ प्रथितगुणगणौ केसरात्खण्डपूर्वात् ॥९६॥
अन्ये जगुर्गुहाया विनिर्गता 'नंदिनो' महात्मान: ।
'देवाश्चाशोकवनात्पंचस्तूप्यास्तत: 'सेन:' ॥९७॥
विपुलतरशाल्मलीद्रुममूलगतावासवासिनो 'वीरा:' ।
'भद्रा' श्च खण्डकेसरतरूमूलनिवासिनो जाता: ॥९८॥
गुहायां वासितो ज्येष्ठो द्वितीयोऽशोकवाटिकात् ।
निर्यातौ 'नंदि 'देवा' भिधानावाद्यावनुक्रमात् ॥९९॥
पंचस्तूप्यास्तु 'सेना' नां 'वीरा' णां शाल्मलीदु्रम: ।
खण्डकेसरनामा च 'भद्र:' 'सिंहो'ऽस्य सम्मत: ॥१००॥
अन्वयार्थ : अनेक आचार्यों का ऐसा मत है कि गुहा से निकलने वाले नंदि, अशोक वन से निकलने वाले देव, पंचस्तूपों से आने वाले सेन बने, भारी शाल्मलिवृक्ष के नीचे निवास करने वाले वीर और खंडकेसर वृक्ष के नीचे रहने वाले भद्र संज्ञा से प्रसिद्ध किये गये थे१ ॥९६-१००॥