स्वासन्नमृतिं ज्ञात्वा माभूत्संक्लेशमेतयोरस्मिन् ।
इति गुरुणा संचिन्त्य द्वितीयदिवसे ततस्तेन ॥१२९॥
प्रियहितवचनैरमुष्य ताबुभौ एव कुरीश्वरं प्रहितौ ।
तावपि नवभिदिवसैर्गत्वा तत्पत्तनमवाप्य ॥१३०॥
योगं प्रगृह्य तत्राषाढे मास्यसितपक्षपंचम्याम् ।
वर्षाकालं कृत्वा विहरन्तौ दक्षिणाभिमुखं ॥१३१॥
अन्वयार्थ : दूसरे दिन गुरू ने यह सोचकर कि मेरी मृत्यु सन्निकट है, यदि ये समीप रहेंगे तो दु:खी होंगे, उन दोनों को कुरीश्वर भेज दिया। तब वे ९ दिन चलकर उस नगर में पहुँच गये। वहाँ आषाढ़ कृष्ण ५ को योग ग्रहण करके उन्होंने वर्षाकाल समाप्त किया और पश्चात् दक्षिण की ओर विहार किया ॥१२९-१३१॥