+ वैनयिकों की उत्पत्ति -
सव्वेसु य तित्थेसु य वेणइयाणं समुब्भवो अत्थि ।
सजडा मुंडियसीसा सिहिणो णंगा य केई य ॥18॥
सर्वेषु च तीर्थेषु च वैनयिकानां समुद्भवः अस्ति ।
सजटा मुण्डितशीर्षा: शिखिनो नग्नाश्च कियन्तश्च ॥१८॥
अन्वयार्थ : सारे ही तीर्थों में अर्थात्‌ सभी तीर्थंकरों के शासन में वैनयिकों का उद्भव होता रहा है । उनमें कोई जटाधारी, कोई मुंडे, काई शिखाधारी और कोई नग्न रहे हैं ।