दुठ्ठे गुणवंते वि य समया भत्तीय सव्वेदेवाणं ।
णमणं दंडुव्व जणे परिकलियं तेहि मूढेहिं ॥19॥
दुष्टे गुणवति अपि च समया भक्तिश्च सर्वदेवेभ्य: ।
नमनं दण्ड इव जने परिकलितं तैर्मूढै: ॥१९॥
अन्वयार्थ : चाहे दुष्ट हो चाहे गुणवान हो, दोनों में समानता से भक्ति करना और सारे ही देवों को दण्ढ के समान आड़े पडकर नमन करना, इस प्रकार के सिद्धान्त को उन मूर्खों ने लोगों में चलाया ।