जिणमग्गबाहिरं जं तच्चं संदरसिऊण पावमणो ।
णिच्चणिगोयं पत्तो सत्तो मज्जेसु विविहेसु ॥23॥
जिनमार्गबाह्यं यत् तत्त्वं संदर्श्य पापमनाः ।
नित्यनिगोदं प्राप्त: सक्तो मद्येषु विविधेषु ॥२३॥
अन्वयार्थ : और भी बहुत सा जैनधर्म से बहिर्भूत उपदेश देकर और तरह-तरह की शराबों में आसक्त रहकर वह पापी नित्यनिगोद को प्राप्त हुआ ।