+ द्राविडसंघ की उत्पत्ति -
सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुठ्ठो ।
णामेण वज्जणंदी पाहुडवेदी महासत्तो ॥24॥
अप्पासुयचणयाणं भक्खणदो वज्जिदो मुणिंदेहिं।
परिरइयं विवरीयं विसेसियं वग्गणं चोज्जं॥25॥
श्रीपूज्यपादशिष्यो द्राविडसंघस्य कारको दुष्ट: ।
नाम्ना वज्रनन्दिः प्राभृतवेदी महासत्त्व: ॥२४॥
अप्राशुकचणकाणां भक्षणतः वर्जित: मुनीन्द्रै: ।
परिरचितं विपरीतं विशेषितं वर्ग्गणं चोद्यम् ॥२५॥
अन्वयार्थ : श्रीपूज्यपाद या देवनन्दि आचार्य का शिष्य वज्रनन्दि द्रविड संघ का उत्पन्न करनेवाला हुआ । यह प्राभृत ग्रन्थों का ज्ञाता और महान पराक्रमी था । मुनिराजों ने उसे अप्रासुक या सचित्त चने को खाने से रोका, क्योंकि इसमें दोष होता है, पर उसने न माना और बिगड़कर विपरीतरूप प्रायश्चित्तादि शास्त्रों की रचना की ।*'विशेषितं वर्ग्गणं चोद्यम्' पर 'क' पुस्तक में जो टिप्पणी दी है उसका अर्थ यह है कि उसने प्रायश्चित्त शास्त्र बनाये । उसी के अनुसार हमने यह अर्थ लिया है; परन्तु इसका अर्थ स्पष्ट: समझ में नहीं आया ।