बीएसु णत्थि जीवो उब्भसणं णत्थि फासुगं णत्थि ।
सावज्जं ण हु मण्णइ ण गणइ गिहकप्पियं अट्ठं ॥26॥
बीजेषु नास्ति जीव: उद्भक्षणं नास्ति प्राशुकं नास्ति ।
सावद्यं न खलु मन्यते न गणति गृहकल्पितं अर्थम् ॥२६॥
अन्वयार्थ : उसके विचारानुसार बीजों में जीव नहीं हैं, मुनियों को खड़े-खड़े भोजन करने की विधि नहीं है, कोई वस्तु प्रासुक नहीं है । वह सावद्य भी नहीं मानता और गृहकल्पित अर्थ को नहीं गिनता ।