तस्स य सिस्सो गुणवं गुणभद्दो दिव्वणाणपरिपुण्णो
पक्खुववासुट्ठमदी महातवो भावलिंगो य ॥31॥
तस्य च शिष्यो गुणवान् गुणभद्रो दिव्यज्ञानपरिपूर्ण: ।
पक्षोपवासः सुष्ठुमतिः महातपः भावलिंगश्च ॥३१॥
अन्वयार्थ : उनके शिष्य गुणभद्र हुए, जो गुणवान, दिव्यज्ञान परिपूर्ण, पक्षोपवासी, शुद्धमति, महातपस्वी और भावलिंग के धारक थे ।