तेण पुणो वि य मिच्चुं णाऊण मुणिस्स विणयसेणस्या
सिद्धंतं घोसित्ता सयं गयं सग्गलोयस्स ॥32॥
तेन पुनः अपि च मृत्युं ज्ञात्वा मुनेः विनयसेनस्य ।
सिद्धान्तं धोषयित्वा स्वयं गतः स्वर्गलोकस्य ॥३२॥
अन्वयार्थ : विनयसेन मुनि की मृत्यु के पश्चात्‌ उन्होंने सिद्धान्तों का उपदेश दिया, और फिर वे स्वयं भी स्वर्गलोक को चले गये । अर्थात् जिनसेन मुनि के पश्चात्‌ विनयसेन आचार्य हुए और फिर उनके बाद गुणभद्र स्वामी हुए ।*तेणप्पणों वि मिच्चुं ” अथीत्‌ “ उन्होंने अपनी भी मृत्यु जानकर इस प्रकार का पाठ ख और ग प्रीतियों में है ।