परिवज्जिऊण पिच्छं चमरं घित्तूण मोहकालिएण ।
उम्मग्गं संकलियं बागडविसएसु सव्वेसु ॥34॥
परिवर्ज्य पिच्छं चमरं गृहीत्वा मोहकलितेन ।
उन्मार्ग: संकलित: बागड़विषयेषु सर्वेषु ॥३४॥
अन्वयार्थ : मयूर-पिच्छि को त्यागकर तथा चँवर ग्रहण करके उस अज्ञानी ने सारे बागढ़ प्रान्त में उन्मार्ग का प्रचार किया ।