जइ पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिव्वणाणेण ।
ण विदोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति ॥43॥
यदि पद्मनन्दिनाथः सीमन्धरस्वामिदिव्यज्ञानेन ।
न विबोधति तहिं श्रमणाः कथं सुमार्ग प्राजानन्ति ॥४३॥
अन्वयार्थ : विदेहक्षेत्र के वर्तमान तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी के समवसरण में जाकर श्रीपद्मनन्दिनाथ (कुन्दकुन्द् स्वामी) ने जो दिव्य-ज्ञान प्राप्त किया था, उसके द्वारा यादि वे बोध न देते, तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे जानते ?