भूयबलिपुप्फयंता दक्खिणदेसे तहोत्तरे धम्मं ।
जं भासंति मुणिंदा तं तच्चं णिव्वियप्पेण ॥44॥
भूतबलिपुष्पदन्तौ दक्षिणदेशे तथोत्तरे धर्मम् ।
यं भाषेते मुनीन्द्रौ तत्तत्त्वं निर्विकल्पेन ॥४४॥
अन्वयार्थ : भूतबलि और पुष्पदन्त इन दो मुनियों ने दक्षिण देश में और उत्तर में जो धर्म बतलाया, वही बिना किसी विकल्प के तत्त्व है, अर्थात् धर्म का सच्चा स्वरूप है ।