तत्तो ण कोवि भणिओ गुरुगणहरपुंगवेहिं मिच्छत्तो ।
पंचमकालवसाणे सिच्छंताणं विणासो हि ॥47॥
ततो न कोपि भणितो गुरुगणधरपुंगवै: मिथ्यात्वः ।
पञ्चमकालावसाने शिक्षकानां विनाशो हि ॥४७॥
अन्वयार्थ : इसके बाद गणधर गुरु ने और किसी मिथ्यात्व का या मत का वर्णन नहीं किया । पंचमकाल के अन्त में सच्चे शिक्षक मुनियों का नाश हो जायगा ।