विशेष :
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प्रकृतिबन्ध की अपेक्षा स्वामित्व प्ररूपणा |
| मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
स्वामित्व व गुणस्थान |
| उत्कृष्ट |
जघन्य |
| ज्ञानावरण |
पाँचों |
१० |
सू. ल./च |
| दर्शनावरण |
चक्षु, अचक्षु अवधि व केवलदर्शन |
१० |
सू. ल./च |
| निद्रा, प्रचला |
१० |
सू. ल./च |
| निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला |
१ |
सू. ल./च |
| वेदनीय |
साता |
१० |
सू. ल./च |
| असाता |
१-९ |
सू.ल./च |
| मोहनीय |
मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क |
१ |
सू. ल./च |
| अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क |
४ |
सू. ल./च |
| प्रत्याख्यानावरण चतुष्क |
५ |
सू. ल./च |
| संज्वलन चतुष्क |
९ |
सू. ल./च |
| हास्य,रति, अरति, शोक,भय, जुगुप्सा |
४-९ |
सू. ल./च |
| स्त्री वेद, नपुंसक वेद |
१ |
सू. ल./च |
| पुरुष वेद |
१० |
सू. ल./च |
| आयु |
नरक |
१ |
असंज्ञी |
| तिर्यंच |
१ |
सू. ल./च |
| मनुष्य, देव |
१-९ |
|
| नाम |
गति |
नरक |
१ |
असंज्ञी |
| तिर्यंच, मनुष्य |
१ |
सू.ल./च |
| देव |
१-९ |
अविरत सम्यक्त्वी |
| जाति |
एकेन्द्रियादि पाँचों |
१ |
सू.ल./च |
| शरीर |
औदारिक, तैजस, कार्मण |
१ |
सू.ल./च |
| वैक्रियक |
१-९ |
अविरत सम्यक्त्वी |
| आहारक |
७ |
अप्रमत्त |
| अंगोपांग |
औदारिक |
१ |
|
| वैक्रियक |
१-९ |
अविरति |
| आहारक |
७ |
अप्रमत्त |
| निर्माण, बन्धन, संघात |
१ |
सू.ल./च |
| संस्थान |
समचतुरस्र |
१-९ |
सू.ल./च |
| शेष पाँचों |
१ |
सू.ल./च |
| संहनन |
वज्र वृषभ नाराच |
१-९ |
सू.ल./च |
| शेष पाँचों |
१ |
सू.ल./च |
| स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण |
१ |
सू.ल./च |
| आनुपूर्वी |
नरक |
१ |
असंज्ञी |
| तिर्यंच व मनुष्य |
१ |
सू.ल./च |
| देव |
१-९ |
अविरत सम्यक्त्वी |
| अगुरुलघु, उपघात, परघात |
१ |
सू.ल./च |
| आतप, उद्योत, उच्छ्वास |
१ |
सू.ल./च |
| विहायोगति |
प्रशस्त |
१-९ |
सू.ल./च |
| अप्रशस्त |
१ |
सू.ल./च |
| प्रत्येक, साधारण, त्रस, स्थावर, दुर्भग |
१ |
सू.ल./च |
| सुभग, आदेय |
१-९ |
सू.ल./च |
| सुस्वर, दु:स्वर, शुभ, अशुभ |
१ |
सू.ल./च |
| सूक्ष्म,बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त |
१ |
सू.ल./च |
| स्थिर, अस्थिर, अनादेय, अयश:कीर्ति |
१ |
सू.ल./च |
| यश:कीर्ति |
१० |
सू.ल./च |
| तीर्थंकर |
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| गोत्र |
उच्च |
१० |
सू.ल./च |
| नीच |
१ |
सू.ल./च |
| अन्तराय |
पाँचों |
१० |
सू.ल./च |
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सू.ल./च = चरम भवस्थ तथा तीन विग्रह में से प्रथम विग्रह में स्थित सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव |
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