विशेष :
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प्रकृति बंध (मार्गणा-नरक) |
बंध |
अबंध |
व्युच्छिति |
1-3 नरक |
मिथ्यादृष्टि |
पर्याप्त |
100 |
1 (तीर्थंकर) |
4 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन) |
अपर्याप्त |
98 |
1 |
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सासादन |
96 |
5 |
25 (गुणस्थानोक्त) |
मिश्र |
70 |
31 (मनुष्य-आयु) |
0 |
असंयत |
पर्याप्त |
72 (मनुष्य-आयु, तीर्थंकर) |
29 |
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अपर्याप्त |
71 |
28 |
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पर्याप्त के बंध योग्य प्रकृतियाँ 101 = 120 -19 (जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, आताप, वैक्रियकअष्टक, आहारक-द्विक) |
अपर्याप्त के बंध योग्य प्रकृतियाँ 99 = 101 - मनुष्यायु,तिर्यञ्चायु |
4-6 नरक |
मिथ्यादृष्टि |
100 |
0 |
4 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन) |
सासादन |
96 |
4 |
25 (गुणस्थानोक्त) |
मिश्र |
70 |
30 (मनुष्य-आयु) |
0 |
असंयत |
71 (मनुष्य-आयु) |
29 |
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बंध योग्य प्रकृतियाँ 100 = 101 - तीर्थंकर |
7 नरक |
मिथ्यादृष्टि |
96 |
3 (उच्चगोत्र, मनुष्यद्विक) |
5 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन, तिर्यञ्चायु) |
सासादन |
91 |
8 |
24 (गुणस्थानोक्त २५-१ तिर्यंचायु) |
मिश्र |
70 |
29 (24+5) |
0 |
असंयत |
70 |
29 |
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बंध योग्य प्रकृतियाँ 99 = 101 - तीर्थंकर+मनुष्यायु |
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