विशेष :
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मनुष्य-गति मार्गणा में प्रकृति बंध |
बंध |
अबंध |
व्युच्छिति |
मनुष्य [सामान्य, पर्याप्त, मनुष्यिनी] |
मिथ्यादृष्टि |
117 |
3 (तीर्थंकर, आहारकद्विक) |
16 (गुणस्थानोक्त) |
सासादन |
101 |
19 |
31 (25 गुणस्थानोक्त + वज्रवृषभनाराचसंहनन औदारिकद्विक, मनुष्यद्विक, मनुष्यायु) |
मिश्र |
69 |
51 (31+19+देवायु) |
0 |
असंयत |
71 (तीर्थंकर, देवायु) |
49 |
4 (अप्रत्याख्यानावरण) |
देशविरत |
67 |
53 |
4 (प्रत्याख्यानावरण ४) |
6 प्रमत्तसंयत |
63 |
57 |
6 (असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अशुभ, अस्थिर, अयशःकीर्ति) |
7 अप्रमत्तसंयत |
59 (+आहारक द्विक) |
61 |
1 (देव आयु) |
8 अपूर्वकरण |
58 |
62 |
36 (निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, शरीर ४ [तेजस, कार्माण, आहारक, वैक्रियिक], अंगोपांग २ [आहारक,वैक्रियिक], समचतुस्र संस्थान, देव गति, देव गत्यानुपूर्व्य, स्पर्श,रस,गंध,वर्ण, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, प्रत्येक, शुभ, सुभग, सुःस्वर, आदेय) |
9 अनिवृतिकरण |
22 |
98 |
5 (संज्ज्वलन ४, पुरुष-वेद) |
10 सूक्ष्मसाम्पराय |
17 |
103 |
16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल], अंतराय ५, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र) |
11 उपशान्तमोह |
1 |
119 |
0 |
12 क्षीणमोह |
1 |
119 |
0 |
13 सयोगकेवली |
1 |
119 |
1 (साता-वेदनीय) |
14 अयोगकेवली |
0 |
120 |
0 |
बंध योग्य प्रकृतियाँ 120 |
मनुष्य निवृत्त्यपर्याप्त |
मिथ्यादृष्टि |
107 |
5 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) |
13 (16-नरकद्विक, नरकायु) |
सासादन |
94 (107-13) |
18 |
29 (31 - तिर्यंचायु, मनुष्यायु) |
असंयत |
70 (तीर्थंकर-सुरचतुष्क) |
42 |
8 (4 प्रत्याख्यान,4 अप्रत्याख्यान) |
प्रमत्तविरत |
62 |
50 |
61 |
सयोग-केवली |
1 |
111 |
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बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120-8(4 आयु, नरकद्विक, आहारकद्विक) |
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