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मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय

  विशेष 

विशेष :


मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
मनुष्य सामान्य मिथ्यात्व 97 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर, आहारक-द्विक) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 95 7 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 91 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 11 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 92 (सम्यक प्रकृति, मनुष्यानुपूर्वी) 10 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 84 18 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 21 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 26 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 30 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 36 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 42 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 43 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 45 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 60 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 90 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 102 = 122 - 20 (वैक्रियकअष्टक, तिर्यञ्च-त्रिक, जातिचतुष्क, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर, आतप, उद्योत)
पर्याप्त मिथ्यात्व 95 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर, आहारक-द्विक) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 94 6 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 90 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 10 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 91 (+सम्यक प्रकृति, मनुष्यानुपूर्वी) 9 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 83 17 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 80 (+आहारकद्विक) 20 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 75 25 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 71 29 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 35 5 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद २-[पुरुष, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 40 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 41 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 43 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 58 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 88 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 100 = 102 - 2 (स्त्रीवेद, अपर्याप्त)
मनुष्यनी मिथ्यात्व 94 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 93 3 5 (अनंतानुबंधी ४, मनुष्यानुपूर्वी)
मिश्र 89 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 89 (+सम्यक प्रकृति) 7 7 (अप्रत्याख्यानावरण ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 82 14 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 77 19 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 22 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 26 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 32 4 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], स्त्रीवेद)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 36 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 37 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 39 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 41 55 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 11 85 11 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 96 = 102 - 6 (वेद 2 [पुरुष, नपुंसक], अपर्याप्त, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
लब्ध्यपर्याप्त उदय-योग्य प्रकृतियाँ 71 = 102 - 31 (वेद 2 [पुरुष, स्त्री], स्त्यानत्रिक, उच्च-गोत्र, पर्याप्त, परघात, उच्छ्वास, सुस्वर-दुस्वर, विहायोगति 2, यशस्कीर्ति, आदेय, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सम्यक्त्व, मिश्र, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
भोगभूमि मनुष्य मिथ्यात्व 76 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 75 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 71 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 72 (+सम्यक प्रकृति) 6 5 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 78 = 102 - 24 (स्त्यानत्रिक, नपुंसक-वेद, नीच-गोत्र, संहनन 5, संस्थान 5, दुर्भगचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, अपर्याप्त, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
देव सामान्य मिथ्यात्व 75 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 74 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 70 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (देवानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 71 (+सम्यक प्रकृति, देवानुपूर्वी) 6 9 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवचतुष्क, देवायु)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = 122 - 45 (नरक-त्रिक, तिर्यञ्च-त्रिक, मनुष्य-त्रिक, जातिचतुष्क, दुर्भगचतुष्क, स्थावरचतुष्क, औदारिक 2 [शरीर, अंगोपांग], स्त्यानत्रिक, नपुंसक-वेद, नीच-गोत्र, संहनन 6, संस्थान 5, अप्रशस्त विहायोगति, आतप, उद्योत, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
सौधर्म से ग्रैवेयक देव मिथ्यात्व 74 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 73 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 69 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (देवानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 70 (+सम्यक प्रकृति, देवानुपूर्वी) 6 9 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवचतुष्क, देवायु)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 76 = 77 - स्त्री-वेद
अनुदिश / अनुत्तर उदय-योग्य प्रकृतियाँ 70 = 77 - 7 (स्त्री-वेद, सम्यक-मिथ्यात्व, मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी ४)
भवनत्रिक देव अथवा देवी मिथ्यात्व 74 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 73 3 5 (अनंतानुबंधी ४, देवानुपूर्वी)
मिश्र 69 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 69 (+सम्यक प्रकृति) 7 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव २ [गति, आयु], वैक्रियक २)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 76 = 77 - 1 (वेद [स्त्री अथवा पुरुष])