विशेष :
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ज्ञान मार्गणा में कर्म का उदय |
उदय |
अनुदय |
व्युच्छिति |
कुमति / कुश्रुत |
मिथ्यात्व |
117 |
0 |
6 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, साधारण, नरक आनुपूर्वी) |
सासादन |
111 |
6 |
9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 117 = 122 - 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थकर) |
विभंगावधि |
मिथ्यात्व |
104 |
0 |
1 (मिथ्यात्व) |
सासादन |
103 |
1 |
4 (अनंतानुबंधी ४) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 104 = 122 - 18 (आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, आनुपूर्वी ४, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) |
मति / श्रुत / अवधि |
अविरत |
104 |
2 |
17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियिक-अष्टक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग) |
संयतासंयत |
87 |
19 |
8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत) |
प्रमत्तसंयत |
81 (+आहारक-द्विक) |
25 |
5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक) |
अप्रमत्तसंयत |
76 |
30 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
72 |
34 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
66 |
40 |
6 (संज्वलन ३, वेद ३) |
सूक्ष्मसाम्पराय |
60 |
46 |
1 (संज्वलन लोभ) |
उपशान्तमोह |
59 |
47 |
2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच]) |
क्षीणमोह |
57 |
49 |
16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 106 = 122 - 16 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, अनंतानुबंधी ४, तीर्थंकर) |
मन:पर्यय |
प्रमत्तसंयत |
77 |
0 |
3 (स्त्यान-त्रिक) |
अप्रमत्तसंयत |
74 |
3 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
70 |
7 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
64 |
13 |
4 (संज्वलन ३, पुरुष-वेद) |
सूक्ष्मसाम्पराय |
60 |
17 |
1 (संज्वलन लोभ) |
उपशान्तमोह |
59 |
18 |
2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच]) |
क्षीणमोह |
57 |
20 |
16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = 122 - 45 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, उद्योत, जातिचतुष्क, वैक्रियकअष्टक, स्थावरचतुष्क, कषाय १२, आनुपूर्वी २ [तिर्यञ्च, मनुष्य], वेद २ [स्त्री, नपुंसक], तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग, नीच-गोत्र, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) |
केवलज्ञान |
सयोगकेवली |
42 |
0 |
30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर) |
अयोगकेवली |
12 |
30 |
12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 42 |
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