विशेष :
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संज्ञी मार्गणा में कर्म का उदय |
उदय |
अनुदय |
व्युच्छिति |
संज्ञी |
मिथ्यात्व |
109 |
4 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक) |
2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त) |
सासादन |
106 |
7 (-नरक आनुपूर्व्य) |
4 (अनंतानुबंधी ४) |
मिश्र |
100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) |
13 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) |
1 (सम्यकमिथ्यात्व) |
अविरत |
104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) |
9 |
17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्व्य 2 [मनुष्य, तिर्यञ्च], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग) |
संयमासंयम |
87 |
26 |
8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत) |
प्रमत्तसंयत
| 81 (+आहारकद्विक) |
32 |
5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक) |
अप्रमत्तसंयत |
76 |
37 |
4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक्त्व-प्रकृति) |
अपूर्वकरण |
72 |
41 |
6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) |
अनिवृतिकरण |
66 |
47 |
6 (संज्वलन ३, वेद ३) |
सूक्ष्मसाम्पराय |
60 |
53 |
1 (संज्वलन लोभ) |
उपशान्तमोह |
59 |
54 |
2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच]) |
क्षीणमोह |
57 |
56 |
57 |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 113 = 122 - 9 (आतप, स्थावर, साधारण, सूक्ष्म, जातिचतुष्क, तीर्थंकर) |
असंज्ञी |
मिथ्यात्व |
91 |
0 |
13 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप, उद्योत, स्त्यान-त्रिक, परघात, उच्छ्वास, दुस्वर, अप्रशस्त विहायोगति) |
सासादन |
78 |
13 |
9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क) |
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 91 = 122 - 31 (सम्यक-प्रकृति, सम्यकमिथ्यात्व, मनुष्य-त्रिक, वैक्रियकअष्टक, उच्च-गोत्र, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सुस्वर, आदेय, प्रशस्त विहायोगति, आहारकद्विक, तीर्थंकर) |
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