
अद्धापरिमाण में अल्प-बहुत्व
अन्वयार्थ : अनाकार का ज. [सं. आवली] < चक्षु-इंद्रियावग्रह का ज. < श्रोतावग्रह का ज. < घ्राणावग्रह का ज. < जीह्वाग्रह का ज. < मनोयोग का ज. < वचनयोग का ज. < काययोग का ज. < स्पर्शनेन्द्रियावग्रह का ज. < इंद्रियज अवाय ज्ञान का ज. < इंद्रियज ईहाज्ञान का ज. < श्रुतज्ञान का ज. < श्वासोच्छ्वास का ज. < तद्भवस्थ केवली के केवलज्ञान और केवलदर्शन का तथा सकषाय जीव के शुक्ल लेश्या का ज. < एकत्ववितर्कअवीचार ध्यान का ज. < पृथक्त्ववीतर्कअवीचार ध्यान का ज. < उपशम श्रेणी से गिरे हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < उपशम श्रेणी पर चढ़ते हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < क्षपक श्रेणीगत सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < मान का ज. < क्रोध का ज. < माया का ज. < लोभा का ज. < क्षुद्रभवग्रहण का ज. < कृष्टिकरण का ज. < संक्रामण का ज. < अपवर्तन का ज. < उपशांत कषाय का ज. < क्षीणमोह का ज. < उपशामक का ज. < क्षपक का ज. < चक्षुदर्शनोपयोग का उ. <: चक्षुज्ञानोपयोग का उ. < श्रोत ज्ञानोपयोग का उ. < घ्राणेन्द्रियज ज्ञानोपयोग का उ. < जिह्वाइंद्रियज ज्ञानोपयोग < मनोयोग का उ. < वचनयोग का उ. < काययोग का उ. < स्पर्शनेन्द्रियज ज्ञानोपयोग का उ. < अवायज्ञान का उ. < ईहाज्ञानोपयोग का उ. <: श्रुतज्ञान का उ. < श्वासोच्छ्वास का उ. < तद्भवस्थ केवली के केवलज्ञान और केवलदर्शन का तथा सकषाय जीव के शुक्ल लेश्या का उ. < एकत्ववितर्कअवीचार ध्यान का उ. <: पृथक्त्ववीतर्कअवीचार ध्यान का उ. < उपशम श्रेणी से गिरे हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. < उपशम श्रेणी पर चढ़ते हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. < क्षपक श्रेणीगत सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. <: मान का उ. < क्रोध का उ. < माया का उ. < लोभ का उ. < क्षुद्रभव ग्रहण का उ. < कृष्टिकरण का उ. < संक्रामण का उ. < अपवर्तन का उ. < उपशांत कषाय का उ. < क्षीणमोह का उ. <: उपशामक का उ. < क्षपक का उ.
ज. = जघन्य
उ. = उत्कृष्ट
'<' = विशेष अधिक
'<:' = दूना अधिक
* व्याघात से रहित काल की अपेक्षा है
विशेष