+ श्रो सिद्धस्तुति -
(अडिल्ल छंद)
अविनासी अविकार परमरसधाम हैं ।
समाधान सरवंग सहज अभिराम हैं ॥
सुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादिअनंत हैं ।
जगत शिरोमनि सिद्ध सदा जयवंत हैं ॥४॥
अन्वयार्थ : जो नित्य और निर्विकार हैं, उत्कृष्ट सुख के स्थान हैं, साहजिक शान्ति से सर्वांग सुन्दर हैं, निर्दोष हैं, पूर्ण ज्ञानी हैं, विरोध-रहित हैं, अनादि-अनन्त हैं; वे लोक के शिरोमणि सिद्ध भगवान सदा जयवन्त होवें ॥४॥॥
सरवंग (सर्वांग)=सब आत्मप्रदेश; परमसुख=आत्मीय सुख; अभिराम=प्रिय