(सवैया एकत्रीसा)
जैसैं काहू रतनसौं बींध्यौ है रतन कोऊ,
तामैं सूत रेसमकी डोरी पोई गई है ।
तैसैं बुध टीकाकरि नाटक सुगम कीनौ,
तापरि अलपबुद्धि सूधी परिनई है ॥
जैसैं काहू देसके पुरुष जैसी भाषा कहैं,
तैसी तिनिहुंकेबालकनि सीख लई है ।
तैसैं ज्यौं गरंथकौ अरथ कह्यौ गुरु त्योंहि,
हमारी मति कहिवेकौं सावधान भई है ॥१३॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार हीरा की कनी से किसी रत्न में छेद कर रक्खा हो तो उसमें रेशम का धागा डाल देते हैं, उसी प्रकार विद्वान स्वामी अमृतचन्द्र आचार्य ने टीका करके समयसार को सरल कर दिया है, इससे मुझ अल्पबुद्धि की समझ में आ गया । अथवा जिस प्रकार किसी देश के निवासी जैसी भाषा बोलते हैं वैसी उनके बालक सीख लेते हैं; उसी प्रकार मुझको गुरु-परम्परा से जैसा अर्थज्ञान हुआ है वैसा ही कहने को मेरी बुद्धि तत्पर हुई है ॥१३॥बुध=विद्वान्‌; परिनई (परणई)=हुईं है