अनुभौके रसकौं रसायन कहत जग,
अनुभौ अभ्यास यहु तीरथ की ठौर है ।
अनुभौ की जो रसा कहावै सोई पोरसा सु,
अनुभौ अधोरसासौं ऊरध की दौर है ॥
अनुभौ की केलि यहै कामधेनु चित्रावेलि,
अनुभौकौ स्वाद पंच अमृत कौ कौर है ।
अनुभौ करम तोरै परमसौं प्रीति जोरै,
अनुभौ समान न धरम कोऊ और है ॥१९॥
अन्वयार्थ : अनुभव के रस को जगत के ज्ञानी लोग रसायन कहते हैं, अनुभव का अभ्यास एक तीर्थ-भूमि है, अनुभव की भूमि सकल पदार्थों की उपजानेवाली है, अनुभव नर्क से निकालकर स्वर्ग-मोक्ष में ले जाता है, इसका आनन्द कामधेनु और चित्रावेलि के समान है, इसका स्वाद पंचामृत भोजन के समान है। यह कर्मों को क्षय करता है और परम-पद से प्रेम जोड़ता है, इसके समान अन्य कोई धर्म नहीं है ॥१६॥
रसा=पृथ्वी; अधोरसा=नरक; पोरसा=उपजाऊ भूमि; चित्रावेलि=एक तरह की जड़ी का नाम