+ संवर का वर्णन -
(दोहरा)
जो उपयोग स्वरूप धरि, वरतै, जोग विरत्त ।
रोकै आवत करमकौं, सो है संवर तत्त ॥३१॥
अन्वयार्थ : (दोहरा)
जो उपयोग स्वरूप धरि, वरतै, जोग विरत्त ।
रोकै आवत करमकौं, सो है संवर तत्त ॥३१॥