+ बंध का वर्णन -
(दोहरा)
जो नवकरम पुरानसौं, मिलैं गांठि दिढ़ होइ ।
सकति बढ़वै बंसकी, बंध पदारथ सोइ ॥३३॥
अन्वयार्थ : (दोहरा)
जो नवकरम पुरानसौं, मिलैं गांठि दिढ़ होइ ।
सकति बढ़वै बंसकी, बंध पदारथ सोइ ॥३३॥