(समुच्चय-जयमाला) सम्यक् दरशन-ज्ञान-व्रत, इन बिन मुकति न होय अन्ध पंगु अरु आलसी, जुदे जलैं दव-लोय ॥
(चौपाई 16 मात्रा) जापै ध्यान सुथिर बन आवे, ताके करम-बंध कट जावें तासों शिव-तिय प्रीति बढ़ावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावें ॥।१॥ ताको चहुं गति के दुख नाहीं, सो न परे भव-सागर माहीं जनम-जरा-मृतु दोष मिटावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥२॥ सोई दश लक्षनको साधे, सो सोलह कारण आराधे सो परमातम पद उपजावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥३॥ सो शक्र-चक्रिपद लेई, तीन लोक के सुख विलसेई सो रागादिक भाव बहावै, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥४॥ सोई लोकालोक निहारे, परमानंद दशा विस्तारे आप तिरै औरन तिरवावे, जो सम्यक् रत्न-त्रय ध्यावे ॥५॥