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श्री
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मत राचो धीधारी भव रंभ
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राग : उझाज जोगी रासा
नित पीज्यो धीधारी

मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥टेक॥

इन्द्र जाल को ख्याल मोह ठग, विभ्रम पास पसारी ।
चहुँगति विपतमयी जामें जन, भ्रमत भरत दुख भारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥१॥

रामा, मां, वांमा, सुत, पितु, सुता श्वसा अवतारी ।
को अचंभ जहाँ आपके पुत्र दशा विसतारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥२॥

घोर नरक दुख ओर न छोर, न लेश न सुख विस्तारी ।
सुरनर प्रचुर विषय जुर जारे, को सुखिया संसारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥३॥

*मंडल है ^आखंडल छिन में, नृप कृमि सघन भिखारी ।
जासुत विरहमरी ह्वै बाघिन ता सुत देह विदारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥४॥

शिशु न हिताहित ज्ञान तरुण उर, #मदन दहन &परजारी ।
बृद्ध भये विकलांगी थाये, कौन दशा सुखकारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥५॥

यौं असार लख छार भव्य झट, भये मोख मगचारी ।
यातें होक उदास 'दौल' अब, भज निज पति जगतारी ॥
मत राचो धीधारी, भव रंभ थंम सम जानके ॥६॥

* : राजा, ^ इंद्र, # : कामदेव, & : जला दिया



अर्थ : हे बुद्धिमान भाइयों ! इस ससार को केले के थम्भ के समान असार समझकर इसमें अनुरक्त मत होओ।
यहाँ मोहरूपी ठग ने इन्द्रजाल के समान विभ्रमरूपी जाल फैला रखा है। यहाँ अपार दु'खो से भरी हुई चार गतियाँ हैं जिनमे प्राणी भ्रमण कर रहे है और घोर दुःख सहन कर रहे हैं।
यहाँ-इस संसार मे -- कभी पत्नी मरकर माता हो जाती हे और कभी माता मरकर पत्नी हो जाती है, कभी पुत्र मरकर पिता हो जाता है ओर कभी पुत्री मरकर बहिन हो जाती है। यहां तक कि कभी स्वयं ही स्वय का पुत्र हो जाता है, इसमें क्या आश्चर्य है ?
यहाँ नरकगति मे दुख तो इतना घोर है कि जिसका कोई ओरूछोर नहीं है परन्तु सुख लेशमात्र भी नहीं है। देव और मनुष्य भी यहाँ विषय-ज्वर में जल रहे है। संसारियों में सुखी कोन है ?
इस संसार की विडम्बना तो देखो ! यहां इन्द्र क्षण भर में कुत्ता बन जाता है, राजा कीडा बन जाता है और धनवान भिखारी बन जाता है। यहां तक कि जिस पुत्र के वियोग में मरकर बाधिन हुई थी, उसी पुत्र के शरीर को चीर दिया था !!
यहाँ इस संसार में बाल्यावस्था में तो हिताहित का कुछ ज्ञान ही नहीं होता है, तरुणावस्था में हृदय काम की अग्नि से जलता रहता है और वृद्धावस्था में विकलांग हो जाता है। सुखकारी अवस्था कौन है ?
कविवर दौलतराम कहते हैं कि हे भाई ! भव्य जीव तो इस ससार को उक्त प्रकार से असार और राख के समान देखकर शीघ्र मोक्षमार्गी हो गये हैं, अतः तुम भी इस संसार से उदास होकर संसार-तारक जिनेन्द्र भगवान का भजन करो।
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