रे मन भज भज दीन दयाल ।जाके नाम लेत इक खिन में, कटै कोटि अघ जाल ॥टेक॥पार ब्रह्म परमेश्वर स्वामी, देखत होत निहाल ।सुमरण करत परम सुख पावत, सेवत भाजै काल ॥रे मन भज भज दीन दयाल ॥2॥इन्द्र फणिंद्र चक्रधर गावैं, जाकौ नाम रसाल ।जाके नाम ज्ञान प्रकासै, नासै मिथ्या चाल ॥रे मन भज भज दीन दयाल ॥३॥जाके नाम समान नहीं कछु, ऊरध मध्य पताल ।सोई नाम जपौ नित 'द्यानत', छांडि विषै विकराल ॥रे मन भज भज दीन दयाल ॥४॥
अर्थ : ऐ मेरे मन ! तु उस दीनदयाल का सदा स्मरण कर। उसका भजन कर, जिसका नाम लेते ही क्षणभर में करोड़ों कर्मों के समूह का, पापों के जाल का नाश हो जाता है।
वे ऐसे परम ब्रह्म, परम ईश्वर, स्वामी हैं जिनको देखने से, जिनके दर्शन से जीवन कृतकृत्य हो जाता है, धन्य हो जाता है । उनके गुण-स्मरण से मन में सुखानुभूति होती है। उनकी पूजा व भक्ति आदि से मृत्यु का भय, संकट भी टल जाता है।
इन्द्र, नगेन्द्र, चक्रवर्ती आदि भक्तिपूर्वक उनका सरस गुणगान करते हैं। उनके नाम-स्मरण से ही ज्ञान का उजास हो जाता है । उनके गुण-स्मरण से मिथ्यात्व का जाल छिन्न-छिन्न हो जाता है।
जिनके नाम की, गुणों की समता करनेवाला ऊर्ध्व, मध्य और पाताल अर्थात् तीन लोकों में कोई भी नहीं है। द्यानतराय कहते हैं कि इन्द्रिय-विषयों को, जिनका परिणाम दारुण दुःखदायी, विकराल व भयावना है, छोड़कर एकपात्र उसके ही नाम का, गुणों का नित्य निरन्तर जाप करो।