आतम जान रे जान रे जानजीवन की इच्छा करै, कबहुँ न मांगै काल । (प्राणी!)सोई जान्यो जीव है, सुख चाहै दुख टाल ॥आतम...१॥नैन बैन में कौन है, कौन सुनत है बात । (प्राणी!)देखत क्यों नहिं आपमें, जाकी चेतन जात ॥आतम...२॥बाहिर ढूंढ़ैं दूर है, अंतर निपट नजीक । (प्राणी!)ढूंढनवाला कौन है, सोई जानो ठीक ॥आतम...३॥तीन भुवन में देखिया, आतम सम नहिं कोय । (प्राणी!)'द्यानत' जे अनुभव करैं, तिनकौं शिवसुख होय ॥आतम...४॥
अर्थ : हे भव्यजीव! अपनी आत्मा को जानो, पहचानी, समझो।
जो सदैव जीवन की कामना करता है, कभी मृत्यु की माँग नहीं करता, दुःख को टालकर, छोड़कर सदैव सुख चाहता है, जो ऐसा चाहता है वह ही जीव है यह जाना जाता है।
आँखों से कौन देखता है, वचन से कौन बोलता है, कानों से बात कौन सुनता है? यह जान! अरे, जो देखता है, बोलता है, सुनता है वही आत्मा है, वहीं चेतनस्वरूप है, उसे जान।
वह तेरे भीतर ही है। तू अपने आप में अपने चेतन स्वरूप को क्यों नहीं निहारता? क्यों नहीं देखता? जिसकी जाति ही चेतन है ! तू उसे बाहिर ढूँढ़ता है, जहाँ से वह बहुत दूर है जबकि वह तो सदा तेरे बिल्कुल निकट है, पूर्णत: समीप है । अरे यह ढूँढ्नेवाला कौन है? तू उसे ही भली प्रकार जान ले, वह ही आत्मा है।
तीन लोक में अच्छी तरह देख ले, आत्मा के समान अन्य कोई तत्त्व/द्रव्य पदार्थ नहीं है। द्यानतराय कहते हैं कि जो आत्मा का अनुभव करते हैं, उन्हें शिवसुख (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।