वामा घर बजत बधाई, चलि देखि री माई ॥टेक॥सुगुनरास जग आस भरन तिन, जने पार्श्व जिनराई ।श्री ह्रीं धृति कीरति बुद्धि लछमी, हर्ष अंग न माई ॥१॥वरन वरन मनि चूर सची सब, पूरत चौक सुहाई ।हाहा हूहू नारद तुम्बर, गावत श्रुति सुखदाई ॥२॥तांडव नृत्य नटत हरिनट तिन, नख नख सुरीं नचाई ।किन्नर कर धर बीन बजावत, दृगमनहर छवि छाई ॥३॥'दौल' तासु प्रभु की महिमा सुर, गुरु पै कहिय न जाई ।जाके जन्म समय नरक में, नारकि साता पाई ॥४॥
अर्थ : मैया! चलो देखो, वामादेवी के घर पर बधाइयाँ बज रही हैं।
जगत की आशा पूरी करने हेतु, सर्वगुणों के प्रांगसहित भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ है / श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी सब ही दिक्कुमारियाँ हर्ष से फूली नहीं समा रहीं।
इन्द्राणी भाँति-भाँति के रंगों की मणियों के चूरण से चौक को पूर रही हैं, रंगोली सजा रही है। चौक में माँडने माँड रही है। नारद आदि गंधर्व जाति के देव कानों को सुख देनेवाले, प्रसन्नता का द्योतक ध्वनि-नाद कर रहे हैं, विरुदावलि गा रहे हैं।
इन्द्र नट की भाँति तांडव नृत्य (उन्मत्त नृत्य) कर रहे हैं, देवियाँ नृत्य कर रही हैं, किन्नर हाथों में बीन धारणकर उसे बजा रहे हैं। मन व नेत्रों को मोहनेवाली - मन हरनेवाली छवि वहाँ छा रही है।
दौलतराम कहते हैं कि ऐसे प्रभु की महिमा का वर्णन करने हेतु देव व मुनिगण भी समर्थ नहीं हैं। प्रभु के जन्म के समय नरक में दुःखी नारकीजनों को भी साता (सुख शांति) का उदय व अनुभव होता है। हाहा, हहू, नारद व तुंबर - ये चारों गंधर्व जाति के देव हैं।