महावीर निर्वाण दिवस पर, महावीर पूजन कर लूँ वर्धमान अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ॥ पावापुर से मोक्ष गये प्रभु, जिनवर पद अर्चन कर लूँ जगमग जगमग दिव्यज्योति से, धन्य मनुजजीवन कर लूँ ॥ कार्तिक कृष्ण अमावस्या को, शुद्धभाव मन में भर लूँ दीपमालिका पर्व मनाऊँ, भव-भव के बन्धन हर लूँ ॥ ज्ञान-सूर्य का चिर-प्रकाश ले, रत्नत्रय पथ पर बढ़ लूँ परभावों का राग तोड़कर, निजस्वभाव में मैं अड़ लूँ ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त-श्रीवर्धमान जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त-श्रीवर्धमान जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठः स्थापनं ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्त-श्रीवर्धमान जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं
चिदानन्द चैतन्य अनाकुल, निजस्वभाव मय जल भर लूँ जन्म-मरण का चक्र मिटाऊँ, भव-भव की पीड़ा हर लूँ ॥ दीपावलि के पुण्य दिवस पर, वर्धमान पूजन कर लूँ महावीर अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्री वर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
अमल अखण्ड अतुल अविनाशी, निज चन्दन उर में धर लूँ चारों गति का ताप मिटाऊँ, निज पंचमगति आदर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
अजर अमर अक्षय अविकल, अनुपम अक्षतपद उर धर लूँ भवसागर तर मुक्ति वधू से, मैं पावन परिणय कर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
रूप-गन्ध-रस-स्पर्श रहित निज शुद्ध पुष्प मन में भर लूँ काम-बाण की व्यथा नाश कर मैं निष्काम रूप धर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मशक्ति परिपूर्ण शुद्ध नैवेद्य भाव उर में धर लूँ चिर-अतृप्ति का रोग नाशकर, सहज तृप्त निज पद वर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
पूर्ण ज्ञान कैवल्य प्राप्ति हित, ज्ञानदीप ज्योतित कर लूँ मिथ्या-भ्र-तम-मोह नाशकर, निज सम्यक्त्व प्राप्त कर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
पुण्यभाव की धूप जलाकर, घाति-अघाति कर्म हर लूँ क्रोध-मान-माया-लोभादि, मोह-द्रोह सब क्षय कर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
अमिट अनन्त अचल अविनश्वर, श्रेष्ठ मोक्षपद उर धर लूँ अष्ट स्वगुण से युक्त सिद्धगति, पा सिद्धत्व प्राप्त कर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
गुण अनन्त प्रकटाऊँ अपने, निज अनर्घ्य पद को वर लूँ शुद्धस्वभावी ज्ञान-प्रभावी, निज सौन्दर्य प्रकट कर लूँ ॥दीपा. ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
शुभ आषाढ़ शुक्ल षष्ठी को, पुष्पोत्तर तज प्रभु आये माता त्रिशला धन्य हो गई, सोलह सपने दरशाये ॥ पन्द्रह मास रत्न बरसे, कुण्डलपुर में आनन्द हुआ वर्धमान के गर्भोत्सव पर, दूर शोक-दुख-द्वंद्व हुआ ॥ ॐ ह्रीं आषाढशुक्लषष्ठ्यां गर्भंगलप्राप्ताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को, सारी जगती धन्य हुई नृप सिद्धार्थराज हर्षाये, कुण्डलपुरी अनन्य हुई ॥ मेरु सुदर्शन पाण्डुक वन में, सुरपति ने कर प्रभु अभिषेक नृत्य वाद्य मंगल गीतों के, द्वारा किया हर्ष अतिरेक ॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
मगसिर कृष्णा दशमी को, उर में छाया वैराग्य अपार लौकान्तिक देवों के द्वारा धन्य-धन्य प्रभु जय-जय कार ॥ बाल ब्रह्मचारी गुणधारी, वीर प्रभु ने किया प्रयाण वन में जाकर दीक्षा धारी, निज में लीन हुए भगवान ॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां तपोंगलमंडिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
द्वादश वर्ष तपस्या करके, पाया तुमने केवलज्ञान कर बैसाख शुक्ल दशमी को, त्रेसठ कर्म प्रकृति अवसान ॥ सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायों को, युगपत् एक समय में जान वर्धमान सर्वज्ञ हुए प्रभु, वीतराग अरिहन्त महान ॥ ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
कार्तिक कृष्ण अमावस्या को, वर्धमान प्रभु मुक्त हुए सादि-अनन्त समाधि प्राप्त कर, मुक्ति-रमा से युक्त हुए ॥ अन्तिम शुक्लध्यान के द्वारा, कर अघातिया का अवसान शेष प्रकृति पच्यासी को भी, क्षय करके पाया निर्वाण ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्री वर्धमान जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
जयमाला महावीर ने पावापुर से, मोक्षलक्ष्मी पाई थी इन्द्र-सुरों ने हर्षित होकर, दीपावली मनाई थी ॥ केवलज्ञान प्राप्त होने पर, तीस वर्ष तक किया विहार कोटि-कोटि जीवों का प्रभु ने, दे उपदेश किया उपकार ॥ पावापुर उद्यान पधारे, योगनिरोध किया साकार गुणस्थान चौदह को तजकर, पहुँचे भवसमुद्र के पार ॥ सिद्धशिला पर हुए विराजित, मिली मोक्षलक्ष्मी सुखकार जल-थल-नभ में देवों द्वारा गूँज उठी प्रभु की जयकार ॥ इन्द्रादिक सुर हर्षित आये, मन में धारे मोद अपार महामोक्ष कल्याण मनाया, अखिल विश्व को मंगलकार ॥ अष्टादश गणराज्यों के, राजाओं ने जयगान किया नत-मस्तक होकर जन-जन ने, महावीर गुणगान किया ॥ तन कपूरवत् उड़ा शेष नख, केश रहे इस भूतल पर मायामयी शरीर रचा, देवों ने क्षण भर के भीतर ॥ अग्निकुमार सुरों ने झुक, मुकुटानल से तन भस्म किया सर्व उपस्थित जनसमूह, सुरगण ने पुण्य अपार लिया ॥ कार्तिक कृष्ण अमावस्या का, दिवस मनोहर सुखकर था उषाकाल का उजियारा कुछ, तम-मिश्रित अति मनहर था ॥ रत्न-ज्योतियों का प्रकाश कर, देवों ने मंगल गाये रत्न-दीप की आवलियों से, पर्व दीपमाला लाये ॥ सब ने शीश चढ़ाई भस्मी, पद्म सरोवर बना वहाँ वही भूमि है अनुपम सुन्दर, जल मन्दिर है बना वहाँ ॥ प्रभु के ग्यारह गणधर में थे, प्रमुख श्री गौतम स्वामी क्षपकश्रेणि चढ़ शुक्लध्यान से हुए देव अन्तर्यामी ॥ इसी दिवस गौतम स्वामी को, सन्ध्या केवलज्ञान हुआ केवलज्ञान लक्ष्मी पाई, पद सर्वज्ञ महान हुआ ॥ देवों ने अति हर्षित होकर, रत्न-ज्योति का किया प्रकाश हुई दीपमाला द्विगुणित, आनन्द हुआ छाया उल्लास ॥ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर, हो जाता मन अति पावन परम पूज्य निर्वाणभूमि शुभ, पावापुर है मन-भावन ॥ अखिल जगत में दीपावली, त्यौहार मनाया जाता है महावीर निर्वाण महोत्सव, धू मचाता आता है ॥ हे प्रभु! महावीर जिन स्वामी, गुण अनन्त के हो धामी भरतक्षेत्र के अन्तिम तीर्थंकर, जिनराज विश्वनामी ॥ मेरी केवल एक विनय है, मोक्ष-लक्ष्मी मुझे मिले भौतिक लक्ष्मी के चक्कर में, मेरी श्रद्धा नहीं हिले ॥ भव-भव जन्म-मरण के चक्कर, मैंने पाये हैं इतने जितने रजकण इस भूतल पर, पाये हैं प्रभु दुख उतने ॥ अवसर आज अपूर्व मिला है, शरण आपकी पाई है भेदज्ञान की बात सुनी है, तो निज की सुधि आई है ॥ अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा, जब तक मोक्ष नहीं पाऊँ दो आशीर्वाद हे स्वामी! नित्य नये मंगल गाऊँ ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां निर्वाणकल्याणकप्राप्ताय श्रीवर्धमान जिनेन्द्राय जयमालापूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
दीपमालिका पर्व पर, महावीर उर धार भावसहित जो पूजते, पाते सौख्य अपार ॥ (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्)