भोर भयो, उठ जागो, मनुवा, साहब नाम सँभारो ॥सूतां सूतां रैन विहानी, अब तुम नींद निवारों ।मंगलकारी अमृतवेला, थिर चित काज सुधारो ॥भोर...१॥खिनभर जो तूँ याद करैगो, सुख निपजैगो सारो ।बेला बीत्यां है, पछतावै, क्यूँ कर काज सुधारो ॥भोर...२॥घर व्यापारे दिवस बितायो, राते नींद गमायो ।इन बेला निधिचारित आदर, 'ज्ञानानन्द' रमायो ॥भोर...३॥
अर्थ : हे मन ! प्रात काल हो गया । उठो, जागो । भगवान् के नाम का स्मरण करो -- विशुद्ध आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो ।
हे मन ! सोते-सोते रात्रि व्यतीत हो गई । प्रात:काल हो गया । अब तो तुम भ्रम-नींद छोडो । यह वेला अमृतमयी एवं मगलकारिणी है, अत: स्थिरचित्त होकर आत्म-हित-साधन करो । हे मन ! प्रात:काल हो गया । उठो, जागो । भगवान के नाम का स्मरण करो - विशुद्ध आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो ।
हे मन ! यदि तून क्षण-भर के लिए भी भगवान् के नाम का / आत्म-स्वरूप स्मरण किया तो तुझे वास्तविक अनुपम-सुख की उपलब्धि होगी । समय बीत जाने पर पश्चात्ताप ही हाथ रह जाता है । तब फिर किस प्रकार आत्महित-साधन किया जा सकता है ? हे मन ! प्रात:काल हो गया । उठो, जागो । भगवान् के नाम का स्मरण करो -- विशुद्ध आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो ।
रे मानव ! घर और व्यापार के क्रिया-कलापों में तो तुमने दिन व्यतीत कर दिया और रात सोते-सोते निकाल दी -- दिन और रात के समय का तनिक भी सदुपयोग नहीं किया । अब इस मांगलिक वेला में तो तुम चारित्रनिधि एव ज्ञानानन्दमय आत्म-स्वरूप में रमण करो । हे मन ! प्रात:काल हो गया । उठो, जागो । भगवान् के नाम का स्मरण करो -- विशुद्ध आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो ।