अन्वयार्थ : सर्वज्ञ परमात्मा के श्रीमुख से समुत्पन्न जो 'भारती' (सरस्वती) है, वह अनेक भाषामय है । वह अज्ञानरूपी अंधकार का विनाश करती है तथा अनेक प्रकार की विद्याओं का बहुविध प्रकाशन करती है ।
सव्वण्हु-मुहुप्पण्णा, जा भारदी बहुभासिणी । अण्णाण-तिमिरं हंति, विज्जा-बहुविगासिणी ॥२॥
अन्वयार्थ : सर्वज्ञ परमात्मा के श्रीमुख से समुत्पन्न जो 'भारती' (सरस्वती) है, वह अनेक भाषामय है। वह अज्ञानरूपी अंधकार का विनाश करती है तथा अनेक प्रकार की विद्याओं का बहुविध प्रकाशन करती है।
अन्वयार्थ : सरस्वती मेरे द्वारा देखी गयी है, वह दिव्य आकृतिवाली एवं १कमल-सदृश आँखोंवाली, २हंस के स्कन्ध पर आरुढ़ तथा ३वीणा एवं ४पुस्तक को धारण किये हुये है ।
१कमल निर्लिप्तता का प्रतीक २'हंस' नीर-क्षीरन्याय का प्रतीक, ३'वीणा' यथावत् कथन का प्रतीक ४'पुस्तक' ज्ञानानिधि का प्रतीक
अन्वयार्थ : हे सरस्वती! तुम्हें नमस्कार है, तुम वर देने वाली एवं कामरूपिणी हो (में आपका स्मरण करके) विद्याध्यन आरम्भ करता हूँ मुझे सदा सिद्ध (ज्ञानाप्राप्ति) हो ।