सीमंधर, युगमंधर, बाहु, सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभु देव । ऋषभानन, अनन्तवीर्य, सौरीप्रभु, विशालकीर्ति, सुदेव ॥ श्री वज्रधर, चन्द्रानन प्रभु चन्द्रबाहु, भुजंगम ईश । जयति ईश्वर जयतिनेम प्रभु वीरसेन महाभद्र महीश ॥ पूज्य देवयश अजितवीर्य जिन बीस जिनेश्वर परम महान । विचरण करते हैं विदेह में शाश्वत् तीर्थंकर भगवान ॥ नहीं शक्ति जाने की स्वामी यहीं वन्दना करूँ प्रभो । स्तुति पूजन अर्चन करके शुद्ध भाव उर भरूं प्रभो ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरा:! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ॐ ह्रीं श्री विद्यमान विंशति तीर्थंकरा:! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठः स्थापनं ॐ ह्रीं श्री विद्यमान विंशति तीर्थंकरा: अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् सन्निधि करणं
निर्मल सरिता का प्रासुक जल लेकर चरणों में आऊँ । जन्म जरादिक क्षय करने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभ-ऋषभानन-अनन्तवीर्य-सूर्यप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चन्द्रानन-भद्रबाहु-श्रीभुजंग-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरसेन-महाभद्र-यशोधर-अजितवीर्येति विंशति विद्यमान तीर्थंकरेभ्य भवातापविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
शीतल चंदन दाह निकन्दन लेकर चरणों में आऊँ । भव सन्ताप दाह हरने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ । सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
स्वच्छ अखण्डित उज्ज्वल तंदुल लेकर चरणों में आऊँ । अनुपम अक्षय पद पाने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
शुभ्र शील के पुष्प मनोहर लेकर चरणों में आऊँ । काम शत्रु का दर्प नशाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
परम शुद्ध नैवेद्य भाव उर लेकर चरणों में आऊँ । क्षुधा रोग का मूल मिटाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
जगमग अंतर दीप प्रज्ज्वलित लेकर चरणों में आऊँ । मोह तिमिर अज्ञान हटाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
कर्म प्रकृतियों का ईंधन अब लेकर चरणों में आऊँ । ध्यान अग्नि में इसे जलाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा
निर्मल सरस विशुद्ध भाव फल लेकर चरणों में आऊँ । परम मोक्ष फल शिव सुख पाने श्रीजिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
अर्घ पुंज वैराग्य भाव का लेकर चरणों में आऊँ । निज अनर्घ पदवी पाने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ॥ सीमंधर, युगमंधर, आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ । विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्री विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(जयमाला) मध्यलोक में असंख्यात सागर, अरु असंख्यात हैं द्वीप । जम्बूद्वीप धातकीखण्ड अरु, पुष्करार्ध यह ढ़ाई द्वीप ॥ ढ़ाई द्वीप में पंचमेरु हैं, तीनों लोकों में अति ख्यात् । मेरु सुदर्शन, विजय, अचल, मंदर विद्युन्माली विख्यात ॥
एक एक में है बत्तीस, विदेह क्षेत्र अतिशय सुन्दर । एक शतक अर साठ क्षेत्र हैं, चौथा काल जहाँ सुखकर ॥ पाँच भरत अरु पंच ऐरावत कर्म भूमियाँ दस गिनकर । एक साथ हो सकते हैं तीथंकर एक शतक सत्तर ॥
किन्तु न्यूनतम बीस, तीर्थंकर विदेह में होते हैं । सदा शाश्वत विद्यमान, सर्वत्र जिनेश्वर होते हैं ॥ एक मेरु के चार विदेहों, में रहते तीर्थंकर चार । बीस विदेहों में तीर्थंकर, बीस सदा ही मंगलकार ॥
कोटि पूर्व की आयु पूर्ण कर, होते पूर्ण सिद्ध भगवान । तभी दूसरे इसी नाम के, होते हैं अरहन्त महान ॥ श्री जिनदेव महा मंगलमय, वीतराग सर्वज्ञ प्रधान । भक्ति भाव से पूजन करके, मैं चाहूँ अपना कल्याण ॥
विरहमान श्री बीस जिनेश्वर, भाव सहित गुणगान करूँ । जो विदेह में विद्यमान हैं, उनका जय जय गान करूँ ॥ सीमन्धर को वन्दन करके, मैं अनादि मिथ्यात्व हरूँ । जुगमन्दर की पूजन करके, समकित अंगीकार करूँ ॥
श्री बाहु का सुमिरण करके, अविरत हर व्रत ग्रहण करूँ । श्री सुबाहु पद अर्चन करके, तेरह विधि चारित्र धरूँ ॥ प्रभु सुजात के चरण पूजकर, पंच प्रमाद अभाव करूँ । देव स्वयंप्रभ को प्रणाम कर, दुखमय सर्व विभाव हरूँ ॥
ऋषभानन की स्तुति करके, योग कषाय निवृत्ति करूँ । पूज्य अनन्तवीर्य पद वन्दूँ, पथ निर्ग्नन्थ प्रवृत्ति करूँ ॥ देव सौरप्रभ चरणाम्बुज, दर्शन कर पाँचों बन्ध हरूँ । परम विशालकीर्ति की जय हो, निज को पूर्ण अबन्ध करूँ ॥
श्री वज्रधर सर्व दोष हर, सब संकल्प विकल्प हरूँ । चन्द्रानन के चरण चित्त धर, निर्विकल्पता प्राप्त करूँ ॥ चन्द्रबाहु को नमस्कार कर, पाप-पुण्य सब नाश करूँ । श्री भुजंग पद मस्तक धर कर, निज चिद्रूप प्रकाश करूँ ॥
ईश्वर प्रभु की महिमा गाऊँ, आत्म द्रव्य का भान करूँ । श्री नेमिप्रभु के चरणों में, चिदानन्द का ध्यान धरूँ ॥ वीरसेन के पद कमलों में, उर चंचलता दूर करूँ । महाभद्र की भव्य सुछवि लख, कर्मघातिया चूर करूँ ॥
श्री देवयश सुयश गान कर, शुद्ध भावना हृदय धरूँ । अजितवीर्य का ध्यान लगाकर, गुण अनन्त निज प्रगट करूँ ॥ बीस जिनेश्वरः समवसरण लख, मोहमयी संसार हरूँ । निज स्वभाव साधन के द्वारा, शीघ्र भवार्णव पार करूँ ॥
स्वगुण अनन्त चतुष्टयधारी, वीतराग को नमन करूँ । सकल सिद्ध मंगल के दाता, पूर्ण अर्ध के सुमन धरूँ ॥ ॐ ह्रीं श्री सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभ-ऋषभानन-अनन्तवीर्य-सूर्यप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चन्द्रानन-भद्रबाहु-श्रीभुजंग-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरसेन-महाभद्र-यशोधर-अजितवीर्येति विंशति विद्यमान तीर्थंकरेभ्य अनर्घ्यपदप्राप्तये महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
जो विदेह के बीस जिनेश्वर, की महिमा उर में धरते । भाव सहित प्रभु पूजन करते, मोक्ष लक्ष्मी को वरते ॥ (इत्याशीवाद: -- पुष्पांजलिं क्षिपेत्)