(जयमाला) आयु सहस दश वर्ष की, हेम वरन तनसार धनुष पंचदश तुंग तनु, महिमा अपरम्पार
जय जय जय नमिनाथ कृपाला, अरिकुल गहन दहन दवज्वाला जय जय धरम पयोधर धीरा, जय भव भंजन गुन गम्भीरा जय जय परमानन्द गुनधारी, विश्व विलोकन जनहितकारी अशरन शरन उदार जिनेशा, जय जय समवशरन आवेशा
जय जय केवल ज्ञान प्रकाशी, जय चतुरानन हनि भवफांसी जय त्रिभुवनहित उद्यम वंता, जय जय जय जय नमि भगवंता जै तुम सप्त तत्त्व दरशायो, तास सुनत भवि निज रस पायो एक शुद्ध अनुभव निज भाखे, दो विधि राग दोष छै आखे
दो श्रेणी दो नय दो धर्मं, दो प्रमाण आगमगुन शर्मं तीनलोक त्रयजोग तिकालं, सल्ल पल्ल त्रय वात वलायं चार बन्ध संज्ञागति ध्यानं, आराधन निछेप चउ दानं पंचलब्धि आचार प्रमादं, बंध हेतु पैंताले सादं
गोलक पंचभाव शिव भौनें, छहों दरब सम्यक अनुकौने हानिवृद्धि तप समय समेता, सप्तभंग वानी के नेता संयम समुद्घात भय सारा, आठ करम मद सिध-गुन धारा नवों लबधि नवतत्त्व प्रकाशे, नोकषाय हरि तूप हुलाशे
दशों बन्ध के मूल नशाये, यों इन आदि सकल दरशाये फेर विहरि जगजन उद्धारे, जय जय ज्ञान दरश अविकारे जय वीरज जय सूक्षमवन्ता, जय अवगाहन गुण वरनंता जय जय अगुरुलघू निरबाधा, इन गुनजुत तुम शिवसुख साधा
ता कों कहत थके गनधारी, तौ को समरथ कहे प्रचारी ता तैं मैं अब शरने आया, भवदुख मेटि देहु शिवराया बार-बार यह अरज हमारी, हे त्रिपुरारी हे शिवकारी ॥ पर-परणति को वेगि मिटावो , सहजानन्द स्वरुप भिटावो
'वृन्दावन' जांचत शिरनाई, तुम मम उर निवसो जिनराई जब लों शिव नहिं पावौं सारा, तब लों यही मनोरथ म्हारा (धत्ता) जय जय नमिनाथं हो शिवसाथं, औ अनाथ के नाथ सदम ता तें शिर नायौ, भगति बढ़ायो, चीह्न चिह्न शत पत्र पदम ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
श्री नमिनाथ तने जुगल, चरन जजें जो जीव सो सुर नर सुख भोगकर, होवें शिवतिय पीव ॥ (इत्याशिर्वादः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत ॥)