प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ।जे जे उपजैं भूमिपै, जमसौं छूटैं नाहिं ॥टेक॥इन्द्र महा जोधा बली, जीत्यो रावनराय ।रावन लछमनने हत्यो, जम गयो लछमन खाय ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥१॥कंस जरासंध सूरमा, मारे कृष्ण गुपाल ।ताको जरदकुमार ने, मार्यो सोऊ काल ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥२॥कई बार छत्री हते, परशुराम वल साज ।मार्यो सोउ सुभूमिने, ताहि हन्यो जमराज ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥३॥सुर नर खग सब वश करे, भरत नाम चक्रेश ।बाहूबलपै हारकै, मान रह्यो नहिं लेश ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥४॥जिनकी भौहैं फरकतैं, डरते इन्द फनिंद ।पाँयनि परवत फोरते, खाये काल-मृगिंद ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥५॥नारी संकलसारखी, सुत फाँसी अनिवार ।घर बंदीखाना कहा, लोभ सु चौकीदार ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥६॥अन्तर अनुभव कीजिये, बाहिर करुणाभाव ।दो वातनिकरि हुजिये, 'द्यानत' शिवपुरराव ॥प्रानी! ये संसार असार है, गर्व न कर मनमाहिं ॥७॥
अर्थ : हे प्राणी ! यह संसार अपार है, साररहित है। इसके विषय में तू अपने मन में गर्व / मान मत कर । जो-जो भी इस पृथ्वी पर जन्मे हैं, वे कोई भी यम से बचे नहीं है अर्थात् जो जन्मता है वह मरता है।
इन्द्र जैसे महान बली योद्धा को रावण ने जीत लिया। महाबली रावण को वीर लक्ष्मण ने मारा और उस वीर लक्ष्मण को भी यम ने खा लिया।
गउएँ पालनेवाले श्रीकृष्ण ने कंस और जरासंध जैसे वीर पुरुषों को मारा, उस श्रीकृष्ण को जरदकुमार ने मार डाला, उस जरदकुमार को भी काल ने मार डाला।
बलपूर्वक परशुराम ने कई बार क्षत्रियों का नाश किया, उनको सुभूमि ने मारा, यम ने उसको भी मार डाला।
भरत चक्रवर्ती ने देव, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि को वश में किया पर वे बाहुबली से हार गए और उनका तनिक भी मान नहीं रहा अर्थात् उनका मान खण्डित हो गया।
जिनकी भौंहें फड़कते ही, भृकुटि तनते ही इन्द्र नागेन्द्र भयाकुल हो जाते थे, अपने पाँवों से जो पर्वत को भी तोड़ देते, उनको भी कालरूपी सिंह ने खा लिया।
नारी साँकल के समान तथा सुत - बेटा उस फाँसी के समान है जिसका निवारण करना कठिन है । घर एक कारागार के समान है और लोभ चौकीदार है।
अरे, अपने अन्तर में अनुभव करो और बाहर करुणाभाव रखो। द्यानतराय कहते हैं कि ये दोनों बातें जिसमें होती हैं वह मोक्षपुरी का राजा होता है ।