णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं,णमो आईरियाणं, णमो उवज्झायाणं,णमो लोए सव्व साहुणं ॥पहला नमन अरिहंत को, जिनसे कुछ भी छिपा नहीं, विषयों के प्रकोप से जो दूर हैं, राग द्वेष पास आता नहीं, इन्द्र भी पूजन करें, कर्म भी डर-डर मरे, केवल ज्ञान पग धरे, अरिहंत अरि हरे ॥णमो...१॥दूसरा नमन श्री सिद्ध को, साध्य को सिद्ध जिसने किया, अपने रूप में स्थिर हैं जो, अष्ट कर्मों को नष्टकर लिया, एकाग्र मन से याद कर, सिद्ध प्रभु का जाप कर, पापों का नाश कर, भव सागर पार कर ॥णमो...२॥तीसरा नमन आचार्य को, पाँच आचारों का जो पालन करें, धर्म की रक्षा का जिन पे भार है, और साधुओं का जो रक्षण करें, बुद्धि से निर्मल हैं जो, नियमों में दृढ़ है जो, सिंह से निशंक हैं जो, हर तरह से शुद्ध है जो ॥णमो...३॥चौथा नमन उपाध्याय को, पठन पाठन जिनका काम है, आत्मा के ध्यान में जो लीन हैं, आगमों का जिनको ज्ञान है, ध्यान उनका जो धरे पुण्य से झोली भरे, मन की शुद्धि करे, जीवन सफल करे ॥णमो...४॥पाँचवा नमन सर्व साधु को, त्यागा जिन्होंने घर-बार है, सत्य अहिंसा शौच तप, शील जिन्हें श्रृंगार है, कमल सा जीवन जियें, संयम का पालन करें, जीवों पे दया करें, ज्ञान फैलाते चलें ॥णमो...५॥