जय जय पद्म जिनेश पद्मप्रभ पावन पद्माकर परमेश । वीतराग सर्वज्ञ हितंकर पद्मनाथ प्रभु पूज्य महेश ॥ भवदुख हर्ता मंगलकर्ता षष्टम तीर्थंकर पद्मेश । हरो अमंगल प्रभु अनादि का पूजन का है यह उद्देश्य ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्रावतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं
शुद्ध भाव का धवल नीर लेकर जिन चरणों में आऊँ । जन्म मरण की व्याधि मिटाऊँ नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ ॥ परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव का शीतल चंदन ले प्रभु चरणों में आऊँ । भव आताप व्याधि को नाशूँ नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव के उज्ज्वल अक्षत ले, जिन चरणों में आऊँ । अक्षय पद अखंड मैं पाऊँ, नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव के पुष्प सुरभिमय ले, प्रभु चरणों में आऊँ । कामबाण की व्याधि नशाऊँ नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव के पावन चरु लेकर, प्रभु चरणों में आऊँ । क्षुधा व्याधि का बीज मिटाऊँ, नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव की ज्ञान ज्योति लेकर प्रभु चरणों में आऊँ । मोहनीय भ्रम तिमिर नशाऊँ नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव की धूप सुगन्धित, ले प्रभु चरणों में आऊँ । अष्टकर्म विध्वंस करूँ मैं, नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ । परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव सम्यक्त्व सुफल पाने, प्रभु चरणों में आऊँ । शिवमय महामोक्ष फल पाऊँ, नाचूँ गाऊँ हर्षाऊँ ॥ परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव का अर्थ अष्टविध, ले प्रभु चरणों में आऊँ । शाश्वत निज अनर्घपद पाऊँ, नाचूँ गाऊं हर्षाऊं ॥ परम पूज्य पावन परमेश्वर पदमनाथ प्रभु को ध्याऊँ । रोग शोक संताप क्लेश हर मंगलमय शिव पद पाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(पंच कत्याणक) शुभदिन माघ कृष्ण षष्ठी को मात सुसीमा हर्षाएं । उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रीतिंकर तज उर में आए ॥ नव बारह योजन नगरी रच रत्न इन्द्र ने बरसाये । जय श्री पद्मनाथ तीर्थंकर जगती ने मंगल गाए ॥ ॐ ह्रीं माघकृष्णा षष्ठीदिने गर्भ मंगल प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेनद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को कोशाम्बी में जन्म लिया । गिरि सुमेरु पर इन्द्रादिक ने क्षीरोदधि से नव्हन किया ॥ राजा धरणराज आंगन में सुर सुरपति से नृत्य किया । जय जय पद्मनाथ तीर्थंकर जग ने जय जय नाद किया ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा त्रयोदश्यां जन्ममंगल प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेनद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को तुमको जाति स्मरण हुआ । जागा उर वैराग्य तभी लौकान्तिक सुर आगमन हुआ ॥ तरु प्रियंगु मन हर वन में दीक्षा धारी तप ग्रहण हुआ । जय जय पद्मनाथ तीर्थंकर अनुपम तप कल्याण हुआ ॥
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णा त्रयोदश्यां तपो मंगल प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेनद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मनोहर कर्म घाति अवसान किया । कौशाम्बी वन शुक्ल ध्यान धर निर्मल केवलज्ञान लिया ॥ समवसरण में द्वादश सभा जुड़ी अनुपम उपदेश दिया । जय जय पद्मनाथ तीर्थंकर जग को शिव संदेश दिया ॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला पूर्णिमायां केवलज्ञान प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेनद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
मोहन कूट शिखर सम्मेदाचल से योग विनाश किया । फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी को प्रभु भव-बंधन का नाश किया ॥ अष्टकर्म हर ऊर्ध्व गमन कर सिद्ध-लोक आवास लिया । जयति पद्मप्रभु जिनतीर्थंकर शाश्वत आत्मविकास किया ॥
(जयमाला) परम श्रेष्ठ पावन परमेष्ठी पुरुषोत्तम प्रभु परमानन्द परमध्यानरत परमब्रह्ममय प्रशान्तात्मा पद्मानन्द । जय जय पद्मनाथ तीर्थंकर जय जय जय कल्याणमयी । नित्य निरंजन जनमन रंजन प्रभु अनंत गुण ज्ञानमयी ॥
राजपाट अतुलित वैभव को तुमने क्षण में ठुकराया । निज स्वभाव का अवलम्बन ले परम शुद्ध-पद को पाया ॥ भव्य जनों को समवसरण में वस्तु-तत्त्व विज्ञान दिया । चिदानन्द चैतन्य आत्मा परमात्मा का ज्ञान दिया ॥
गणधर एक शतक ग्यारह थे मुख्य वज्रचामर ऋषिवर । प्रमुख रात्रिषेणा सुआर्या श्रोता पशु नर सुर मुनिवर ॥ सात तत्व छह द्रव्य बताए मोक्ष मार्ग सन्देश दिया । तीन लोक के भूले भटके जीवों को उपदेश दिया ॥
निःशंकादिक अष्ट अंग सम्यक्दर्शन के बतलाये । अष्ट प्रकार ज्ञान सम्यक् बिन मोक्ष मार्ग ना मिल पाये ॥ तेरह विधि सम्यक् चारित का सत्स्वरूप है दिखलाया । रत्नत्रय ही पावन शिवपथ सिद्ध स्वपद को दर्शाया ॥
हे प्रभु यह उपदेश ग्रहण कर मैं निज का कल्याण करूँ । निजस्वरूप की सहज प्राप्ति कर पद निर्ग्रन्थ महान वरूँ ॥ इष्ट अनिष्ट संयोगों में भी कभी न हर्ष विषाद करूँ । साम्यभाव धर उर अन्तर में भव का वाद विवाद हरूँ ॥
तीन लोक में सार स्वयं के आत्म द्रव्य का भान करूँ । पर पदार्थ की महिमा त्यागूं सुखमय भेद विज्ञान करूँ ॥ द्रव्य भाव पूजन करके मैं आत्म चिंतवन मनन करूँ । नित्य भावना द्वादश भाऊँ राग द्वेष का हनन करूँ ॥
तुम पूजन से पुण्यसातिशय हो भव-भव तुमको पाऊँ । जब तक मुक्ति स्वपद ना पाऊँ तब तक चरणों में आऊँ ॥ संवर और निर्जरा द्वारा पाप पुण्य सब नाश करूं । प्रभु नव केवल लब्धि रमा पा आर्ठों कर्म विनाश करूँ ॥