सिद्धारथ राजा दरबारे, बँटत बधाई रंग भरी हो ॥टेक॥त्रिसला देवी ने सुत जायो, वर्द्धमान जिनराज वरी हो ।कुण्डलपुर में घर-घर द्वारे, होय रही आनन्द-घरी हो ॥1॥रत्नन की वर्षा को होते, पन्द्रह मास भये सगरी हो ।आज गगन दिश निरमल दीखत, पुष्पवृष्टि गन्धोद झरी हो ॥2॥जन्मत जिनके जग सुख पाया, दूरि गये सब दुख टरी हो ।अन्तर्मुहूर्त नारकी सुखिया, ऐसो अतिशय जन्म घरी हो ॥3॥दान देय नृप ने बहुतेरो, जाचिक जन-मन हर्ष करी हो ।ऐसे वीर जिनेश्वर चरणों, 'बुध महाचन्द्र' जु सीस धरी हो ॥4॥
अर्थ : अहो, आज महाराज सिद्धार्थ के दरबार में रंग-भरी बधाई बँट रही है। देवी त्रिशला ने पुत्र प्रसव किया है। वह पुत्र जिनराज वर्द्धमान हैं। कुण्डलपुर में घर-घर और द्वार-द्वार आनन्द की यह शुभ घड़ी व्याप्त हो रही है। अहो ! रत्नों की वर्षा होते पन्द्रह मास हो गये। आज आकाशदीप्त शिखाएँ निर्मल प्रतीत हो रही हैं और पुष्प-वृष्टि हो रही है, गन्धोदक की झड़ी लगी हुई है। भगवान के जन्म-ग्रहण करते समय संसार ने सुख पाया और सब दुःख दूर हो गये, टल गये। भगवान का अतिशय-युक्त जन्म-वर्णन कैसे किया जाए, उस समय अन्तर्मुहूर्त के लिए नारकियों को भी सुख-प्राप्ति हुई। राजा ने बहुत-सा दान देकर याचकों तथा जनमानस को हर्षित कर दिया। कविवर बुध महाचन्द्र कहते हैं कि मैं ऐसे वीर जिनेश्वर के चरणों में मस्तक नवाते हुए विनय-भक्ति करता हूँ ।