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लागा आतमराम सों नेहरा
Karaoke :
राग ख्याल

लागा आतमरामसों (मारो) नेहरा ॥टेक॥

ज्ञानसहित मरना भला रे, छूट जाय संसार ।
धिक्क! परौ यह जीवना रे, मरना बारंबार ।
लागा आतमरामसों नेहरा ॥१॥

साहिब साहिब मुंहतैं कहते, जानैं नाहीं कोई ।
जो साहिबकी जाति पिछानैं, साहिब कहिये सोई ।
लागा आतमरामसों नेहरा ॥२॥

जो जो देखौ नैनोंसेती, सो सो विनसै जाई ।
देखनहारा मैं अविनाशी, परमानन्द सुभाई ।
लागा आतमरामसों नेहरा ॥३॥

जाकी चाह करैं सब प्रानी, सो पायो घटमाहीं ।
'द्यानत' चिन्तामनि के आये, चाह रही कछु नाहीं ।
लागा आतमरामसों नेहरा ॥४॥



अर्थ : अब मुझे अपनी आत्मा से प्रीति लग गई है ।

भेद विज्ञान प्राप्त करके मरण भी हो जाये तो भी कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि इससे संसार से मुक्ति मिलती है। लेकिन अज्ञान सहित जीवन यह तो धितक्कार करने योग्य है, जिससे बार-बार मरण प्राप्त होता है।

सभी लोग साहिब अर्थात्‌ आतमा आतमा कहते हैं परन्तु उसका स्वरूप कोई नहीं जानता और जो आतमा के सच्चे स्वरूप का ज्ञान करता है वह स्वयं आतमानुभवी बन जाता है।

हे जीव ! तुझे आंखों से जो पंचन्दरिय के विषय दिख रहे हैं वे सभी विनाश को प्राप्त होने वाले है। और इन्हें जानने देखने वाला कभी नाश को प्राप्त न होने वाला अविनाशी परमानन्द स्वभावी ही मैं हूँ।

कविवर पण्डित द्यानतरायजी कहते हैं कि सभी प्राणी जिसकी चाह करते हैं वह सुख स्वयं के ही भीतर ही मौजूद है । अतः जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न के मिलने पर अन्य किसी प्रकार की इच्छा शेष नहीं रहती, वैसा ही आत्मस्वभाव रूपी चिंतामणि मैंने प्राप्त कर लिया है।