तू कितनी मनहर है, तू कितनी सुखकर है ।सुपथ दिखलाती है, ओऽऽ माँ ओऽऽ माँ ॥वस्तु स्वरूप की समझ सिखाती, निज को निज का मार्ग दिखाती ॥स्याद्वाद अरु अनेकांत निश्चय व्यवहार बताती ।सुख के आंचल से, नयों के काजल से, मोक्ष मग दर्शाया ॥१॥जीना सिखाती है माँ तेरी बतियाँ, अब छोड़ू दुख मय चहुँ गतियाँ ॥पार भईं तोरी शरणा से सीता जैसी सतियाँ ।भय जो मृत्यु का, स्वप्न तड़पाता था, निंदिया टूट गयी ॥२॥सम्यक दर्शन ज्ञान चरण मय, शुद्धातम इक शरण है सुखमय ॥मुक्ति महल में पग द्वै धरकर तज दूंगा भव दुखमय ।'समकित' पाकर के, दृष्टि उर लाकर के, सिद्ध पद पाऊँगा ॥३॥