जिनवाणी के सुनै सो मिथ्यात मिटै, मिथ्यात मिटै समकित प्रगटै। जैसे प्रात होत रवि ऊगत, रैन तिमिर सब तुरत फ़टै॥अनादिकाल की भूल मिटावै, अपनी निधि घट घट मैं उघटै। त्याग विभाव सुभाव सुधारै, अनुभव करतां करम कटै॥और काम तजि सेवो वाकौं, या बिन नाहिं अज्ञान घटै। बुधजन या भव परभव मांहि, बाकी हुंडी तुरत पटैं॥
अर्थ : हे जीव! जिनेन्द्र भगवान की वाणी अर्थात् जिनवाणी के श्रवण करने से मिथ्या मान्यता का विनाश होकर सम्यक्त्व की प्रगटता होती है तथा जैसे प्रातःकाल सूर्य के उदय होने पर रात्रिकालीन अन्धकार तुरन्त विलय को प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार सम्यक्त्व रूपी सूर्य के उदय होते ही मिथ्यात्व का नाश हो जाता है।
जिनवाणी माता जीव की अनादि काल की भूल मिटकर स्वआत्मनिधि को पूर्ण रूप में प्रगट कराती है। विभावी भावों का त्याग करके स्वभाव का ग्रहण कराती है और उस आत्मा के अनुभव के द्वारा ही कर्मों का नाश होना बताती है।
अत: हे जीव! बाकी के सभी बाह्य कार्यों को त्यागकर जिनवाणी की ही सेवा करो क्योंकि इसके सुने बिना समझे बिना अज्ञान का नाश नहीं होता। बुधजन कवि कहते हैं कि जिनवाणी के श्रवण करने वालों के इस भव के व पूर्व भवों के कर्ज तुरंत पट जाते हैं अर्थात् पुराने कर्म तुरन्त नाश को प्राप्त हो जाते हैं व सद्गति की प्राप्ति होती है।