विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥टेक॥मात तात नारी सुत बांधव, मिल तोकू भरमाई ।विषय भोग रस जाय नर्क तूं, तिलतिल खण्ड लहाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥१॥मदोन्मत्त वस मरने कूं, कपट की हथनी बनाई ।स्पर्शन इन्द्रिय बसि होके, आय पड़त गज खाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥२॥रसना के बसि होकर मांछल, जाल मध्य उलझाई ।भ्रमर कमल बिच मृत्यु लहत है, विषय नासिका पाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥३॥दीपक लोय जरत, नैनू बसि, मृत्यु पतंग लहाई ।कानन के बसि सर्प हाय के, पींजर मांहि रहाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥४॥विष खायें ते इक भव मांहि, दुख पावै जीवाई ।विषय जहर खाये तैं भव-भव, दुख पावै अधिकाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥५॥एक-एक इन्द्री तैं यह दुख, सबकी कौन कहाई ।यह उपदेश करत है पंडित, 'महाचन्द्र' सुख दाई ॥विषय रस खारे, इन्हैं छाड़त क्यों नहि जीव ॥६॥
अर्थ : विषय-रूपी रस खारे हैं, इन्हें तू क्यों नहीं छोड़ता हैं?
माता, पीता, पत्नी, बेटा, भाई, सब मिलकर तुझे मोहित करते हैं । विषयों को भोगकर उनके फल में नरक में जाएगा और वहाँ ये ही भाई बंधु तेरे तिल-तिल टुकडे करेंगे ।
मदशाली बलवान हाथी को पकड़ने के लिए कुट्टीनी (काठ की हथिनी) बनाई जाती है । स्पर्शन इंद्रिय के बस में होकर हाथी लकड़ी की हथिनी के पीछे जाता है और गड्ढे में गिरकर पकड़ा जाता है ।
रसना इंद्रिय के वश में होकर मछली मछवारे के जाल में फंस जाती है । घ्राण इंद्रिय के वश में होता हुआ भँवरा कमल में फंसकर मृत्यु को प्राप्त होता है ।
नेत्र इंद्रिय के वश, दीपक की लौ में जलकर पतंगा मृत्यु को प्राप्त होता है । कर्ण इंद्रिय के वश सर्प पकड़ा जाता है और उसे पिंजरे में रहना पड़ता है ।
विष खाने से जीव एक बार ही मरण को प्राप्त होता है । विषय रूपी विष को खाकर जीव भव-भव में दुख पाता है ।
एक-एक इंद्रिय के वश होकर जीव दुख पाते हैं, तो जो पांचों इंद्रियों के के विषयों को भोगता हो उसे कौन बचा सकता है? इस प्रकार पंडित महाचन्द्र इंद्रियों के विषय को छोड़ने का उपदेश देते हैं, जो की सुख का कारण है ।